Wednesday, 27 December 2017

राजनीति में रजनीकान्त की एंट्री से कैसे बदलेंगे सियासी समीकरण ??

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साल 2017 तमिलनाडु की राजनीति के लिए काफी उतार-चढ़ाव 12 साल रहा , पिछले साल दिसंबर में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मृत्यु के बाद से प्रदेश में जन्मी राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति अभी भी बरकरार है तमिलनाडु में अधिकतर राजनीतिक व्यक्ति आधारित ही रही है फिर चाहे वह एम जी रामचंद्रन हो एम करुणानिधि हो या खुद जयललिता।
जयललिता की मृत्यु और एम करुणानिधि के खराब स्वास्थ्य के कारण पिछले कुछ समय से तमिलनाडु की सरकार और विपक्ष में नेतृत्व का संकट गहराता चला गया है वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मुख्यमंत्री पलानीसामी से लेकर करुणानिधि के बेटे स्टालिन तक तमिलनाडु में कोई भी ऐसा जननेता नजर नहीं आता जो अपने दम पर वोटरों को बूथ तक ले जा सके।
तमिल फिल्मों के मेगा स्टार रजनीकांत समय समय पर राजनीति में अपने पदार्पण की अटकलों को हवा देते रहे हैं इसी हफ्ते अपने प्रशंसकों से मुलाकात के दौरान आखिरकार उन्होंने यह घोषणा कर दी कि राजनीति में एंट्री पर अपना रुख हुआ वह 31 दिसंबर को साफ करेंगे।
इस मौके पर उन्होंने यह भी कहा कि वह राजनीति में नए नहीं है और जानते हैं कि राजनीति में आने से क्या फायदे नुकसान है। आमतौर पर किसी भी बड़ी घोषणा के पहले इस तरह का सस्पेंस बहुत सोच समझकर बनाया जाता है जिससे लोगों को उस बात को जानने की दिलचस्पी बढ़ती रहे।
अब अगर रजनीकांत इन संकेतों को हम उन की स्वीकृति मान लें तो रजनीकांत की एंट्री का सीधा असर चेन्नई से दिल्ली तक की सियासत पर पड़ेगा। उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में सत्ता विरोधी लहर के कारण भाजपा के लिए 2014 जैसा करिश्मा दोहरा पाना लगभग असंभव दिखाई दे रहा है
ऐसे में उत्तर भारत के नुकसान की भरपाई करने के लिए अमित शाह दक्षिण भारत में भाजपा की राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लग गए हैं और अगर रजनीकांत भाजपा में आए तो तमिलनाडु केरल और कर्नाटक की लगभग 90 सीटों पर अपना प्रभाव छोड़ेंगे यही कारण है कि 2014 के चुनावों से लेकर अब तक प्रधानमंत्री मोदी रजनीकांत को अपने पाले में लाने की कई नाकाम कोशिश कर चुके हैं
रजनीकांत के करीबी और पत्रकार एस गुरुमूर्ति के अनुसार चूंकि वह धार्मिक है इसलिए वह वामपंथी पार्टियों के साथ नहीं जाएंगे , या तो भाजपा के साथ जायेंगे या फिर खुद की।
यूँ तो उत्तर भारत में फिल्म स्टार का सांसद का चुनाव जीतना भी एक उपलब्धि के रूप में देखा जाता है क्योंकि फैन्स और वोटर्स में फर्क होता है लेकिन दक्षिण भारत की बात थोड़ी अलग है अलग इसलिए क्योंकि रा एम जी रामचंद्रन से लेकर एन टी आर और जयललिता समेत कई नेताओं ने अपने फैन बेस के दम पर सत्ता हासिल की है। दक्षिण में फिल्म स्टार्स के फैंस राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता की तरह पूरे समर्पण से अपने नेता का प्रचार प्रसार करते हैं लेकिन फैन बेस पर पूरी तरह निर्भर होकर चुनावी राजनीति में एआईडीएमके और डीएमके जैसी मजबूत पार्टियों को चुनौती देना भी कहीं से बुद्धिमानी नहीं होगा और चूंकि अभी तमिलनाडु में भाजपा का कोई बड़ा नेता नहीं है इसलिए भाजपा उन्हें तमिलनाडु का नेतृत्व देने में बिल्कुल भी नहीं संकोच करेगी।
ऐसे में लगता तो यही है कि आने वाले दिनों में रजनीकांत दक्षिण भारत में टीम मोदी का प्रतिनिधित्व करते हुए नजर आ सकते हैं लेकिन अगर ऐसा हुआ ऐसा करने से एक तरफ जहाँ भाजपा जैसी मजबूत पार्टी का कैडर मिल जाएगा वहीं दूसरी तरफ अमित शाह की चुनावी मैनेजमेंट की टीम।
रजनीकांत फैसला जो भी करें लेकिन अगर वह राजनीति में आते हैं तो आने वाले समय में हमें चेन्नई से लेकर दिल्ली तक नए नए राजनीतिक समीकरण देखने को मिलेंगे।

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