Friday, 22 December 2017

जानिए 2G घोटाले पर अदालत के फैसले की पूरी सच्चाई ???

Image - Creative  commans 
9 साल पहले कथित 2जी घोटाला आजाद भारत के इतिहास में हुआ देश देश में हुआ सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला था इस घोटाले ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को बीते कुछ सालों में धीरे-धीरे सत्ता से दूर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |

नरेन्द्र मोदी ने 2014 के आम चुनावों में इस घोटाले को खूब भुनाया |
बृहस्पतिवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने 9 साल पुराने इस मामले में फैसला सुनाते हुए एक झटके में सभी आरोपियों जिनमें पूर्व संचार मंत्री ए राजा तथा डीएमके नेता करुणानिधि की बेटी कनिमोझी भी शामिल है , को बरी कर दिया |
विशेष सीबीआई जज ओपी सैनी इसके साथ ही सीबीआई के रुख - रवैये पर कई सवाल खड़े किये |
फैसला आने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत तमाम कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कभी कोई घोटाला हुआ ही नहीं , यह सिर्फ यूपीए] सरकार को बदनाम करने की एक साजिश थी एवं पूर्व सीएजी विनोद राय तथा प्रधानमंत्री मोदी को देश से माफी मांगनी चाहिए |
लेकिन क्या सच में कोई घोटाला नहीं हुआ , क्या वह जो भूकंप जैसा आया था वह गलत था ,क्या सीएजी गलत था, क्या मीडिया में महीनों तक चला कवरेज गलत था , क्या इसी मुद्दे पर संसद में हुआ हंगामा गलत था और क्या इसी मुद्दे से प्रभावित जनमत गलत था और अगर यह सब गलत था तो सही क्या था ?
देश के सबसे बड़े घोटाले के तौर पर सामने आये 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला इसलिए हैरान करने वाला है क्योंकि यह एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत जाता हुआ दिख रहा है
सुप्रीम कोर्ट ने आवंटन में अनियमितताओं की पड़ताल के दौरान यह पाया की आवंटन न सिर्फ मनमाने और गैर कानूनी रूप से हुआ है बल्कि इसके लिए अंतिम तिथि और प्रक्रिया में भी हेर फेर किया गया |
सुप्रीम कोर्ट ने इसी कारण तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा द्वारा आवंटित 122 सर्कलों के न सिर्फ लाइसेंस रद्द किए बल्कि कई कंपनियों पर 5 करोड़ तक का जुर्माना भी लगाया
इतने सब तथ्य सामने होने के बाद भी कांग्रेस नेताओं का यह तर्क कि घोटाला कभी हुआ ही नहीं बेहद बचकाना मालूम पड़ता है |
सवालों के घेरे में सीबीआई की भूमिका इस पूरे केस ने आरुषि हत्याकांड के बाद एक बार फिर सीबीआई की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है विशेष सीबीआई जज ओपी सैनी के फैसले में यह क्षोभ बार बार दिख रहा है कि सीबीआई बचती और छिपती क्यों रही ,जब की कोई भी जांच एजेंसी आरोपी को सजा दिलाने में एड़ी चोटी का जोर लगा देती है |
इस केस में सीबीआई की ओर से लापरवाही का आलम यह था की अदालत में उसकी ओर से बिना हस्ताक्षर वाले हलफनामे दाखिल किए जाते रहे और जज के कहने के बावजूद कोई हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं था जाहिर है ऐसे दस्तावेज का कोई कानूनी मतलब नहीं होगा , हालांकि ओपी सैनी ने भी अपने फैसले में माना है कि शुरू में सीबीआई ने उत्साह के साथ मामले को उठाया और आरोपियों के खिलाफ जोरदार पैरवी की और इसी कारण अदालत ने आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए जेल भी भेज दिया |
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में 2जी घोटाले की तह तक जाने और सीबीआई द्वारा जुटाए गए सबूतों के आधार पर ही शीर्ष अदालत द्वारा सभी 122 सर्किल के लाइसेंस रद्द होने के बावजूद सभी आरोपियों के बेदाग रिहा होने से किसी बड़ी साजिश की आशंका को बल मिलता है
फैसले में ओपी सैनी ने हैरानी जताई कि बहस के दौरान ना तो सीबीआई की जांच अधिकारी ना ही कोई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद होता था इतने बड़े घोटाले की पैरवी के लिए सीबीआई की ओर से महज इंस्पेक्टर मनोज कुमार को लगाया जाता है वही मामले में जांच अधिकारी रहे एसपी विवेक प्रियदर्शी को दिल्ली से दूर भोपाल में व्यापम घोटाले की जांच में लगा दिया गया |
सीबीआई के इस रवैया के बाद उस पर सवाल खड़े होना तो लाजमी है मगर जवाब यहां मोदी सरकार को भी देना होगा क्योंकि 2014 के चुनाव चुनाव में जिस भ्रष्टाचार पर उन्हें कांग्रेस को घेरा था 2019 में वह कांग्रेस के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है |



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