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हमारे देश में चुनाव का मौसम कभी खत्म नहीं होता तभी तो गुजरात और हिमाचल के चुनाव खत्म होते ही सभी की नजर नॉर्थ ईस्ट के 3 राज्यों मेघालय , त्रिपुरा और नागालैंड पर जाकर टिक गई है |
तीनों ही राज्यों में मार्च में सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है ऐसे में विधानसभा चुनाव अगले महीने फरवरी में अपेक्षित है चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार चुनाव तारीखों का ऐलान अगले हफ्ते तक कर दिया जाएगा | मेघालय और नागालैंड के चुनावों पर कभी और बात करेंगे , आज चलिए जरा त्रिपुरा विधानसभा की स्थिति को नजदीक से समझने की कोशिश करते हैं |
त्रिपुरा में पिछले कुछ महीनों में घटे राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो आजाद भारत के इतिहास में पहली बार यह राज्य वामपंथी पार्टियों और भाजपा की सीधी टक्कर का गवाह बनता हुआ नजर आ रहा है ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि त्रिपुरा में कांग्रेस सत्ता की लड़ाई से लगभग बाहर हो गई है कांग्रेस के 10 में से 6 विधायकों ने पहले तृणमूल कांग्रेस और फिर वही विधायक भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा त्रिपुरा विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई |
त्रिपुरा में कांग्रेस के हाशिए पर जाने का मुख्य कारण है वामपंथी पार्टियों के प्रति उसका नरम रुख | कांग्रेस का यह नरम रुख एक तरह से उसकी राजनीतिक मजबूरी भी है क्योंकि 2019 के चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर सभी गैर एनडीए दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रही है ऐसे में त्रिपुरा में सीपीएम का विरोध उसे महंगा पड़ सकता है | यही कारण है कि बंगाल चुनावों में जब कांग्रेस ने लेफ्ट पार्टियों से गठबंधन किया है तो राज्य में कांग्रेस के 6 विधायक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में चले गए और जब ममता बनर्जी और लेफ्ट पार्टियों ने राष्ट्रपति चुनाव में एक पक्ष में वोटिंग की तो सभी विधायक भाजपा में आ गए |
त्रिपुरा में चुनावों का समय नजदीक आते देख यहां की सभी आदिवासी वोट बैंक आधारित पार्टियों IPFT , INPT और नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ़ त्रिपुरा ने भाजपा कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन की बातचीत तेज कर दी है |
इन्हीं राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच पिछले हफ्ते IPFT जोकि Tripura Tribal Areas Autonomous District Council (TTAADC) को अलग राज्य बनाने की मांग कर रही है ,के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के कई सीनियर नेताओं से मुलाकात की | मुलाकात के बाद अगरतला लौटे पार्टी नेता एन सी देववर्मा ने कहा कि गृह मंत्री ने अलग राज्य की मांग को देखने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी के गठन करने की बात को स्वीकार कर लिया है यह कमेटी सभी पहलुओं पर जांच कर 3 महीने में अपनी रिपोर्ट देगी |
दिल्ली में हुई इन बैठकों के प्रमुख सूत्रधार रहे नॉर्थ ईस्ट में भाजपा के नए चाणक्य हिमंत बिस्वा शर्मा |
आपको बता दें कि भाजपा लेफ्ट और कांग्रेस समेत राज्य की सभी पार्टियों ने अलग राज्य की मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य को दो हिस्सों में बांटना ठीक नहीं है लेकिन चुनावी मुद्दे की तलाश और IPFT को अपने पाले में करने की कोशिशों के बीच भाजपा ने इस मुद्दे को अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दे दिया है
त्रिपुरा के वर्तमान चुनावी माहौल में एक तरफ जहां 20 सालों की सत्ता विरोधी लहर से लड़ रहे मुख्यमंत्री माणिक सरकार के सामने सरकार बचाने की बड़ी चुनौती है वहीं दूसरी तरफ अमित शाह की अगुवाई में भाजपा राज्य में बेहद आक्रामक अंदाज़ में प्रचार प्रसार कर रही है |
राज्य में अभी चुनावी भविष्यवाणी करना तो ठीक नहीं होगा लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि त्रिपुरा विधानसभा के इतिहास में भाजपा जहां अब तक की सबसे मजबूत स्थिति में है तो वहीं कांग्रेस अब तक अपनी सबसे खराब स्थिति में |
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