Wednesday, 31 January 2018

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को बड़ा झटका !

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को बड़ा झटका !

Hindibaazi
लोकसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे राजनीतिक धुरंधर नए नए समीकरण साधने में लग गए हैं |  कहते हैं राजनीति में कोई पक्का दुश्मन या दोस्त नहीं होता सब मौके की नजाकत से तय होता है शायद इसीलिए 2013 में मोदी के नाम पर एनडीए  छोड़ने वाले नीतीश कुमार घूम फिर कर भाजपा के साथ वापस आ गए हैं | 
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा को लगातार कई नए साथी मिले लेकिन ऐसा लगता है कि इन नए साथियों को साथ लेने के चक्कर में भाजपा ने अपने पुराने साथियों को नाराज कर दिया है | 
पिछले दिनों शिवसेना की स्थापना दिवस के मौके पर शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़ने का फैसला किया तो भाजपा की कुछ और सहयोगी पार्टियों ने भी दबी जुबानी में अपनी नाराजगी जाहिर कर दी | 

कौन-कौन छोड़ सकता है एनडीए ?  

बसे पहले बात करते हैं उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर की | 
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष जब से योगी सरकार में मंत्री बने हैं लगातार अपनी सरकार पर निशाना साधते रहे है सबसे पहले गाजीपुर के डी ० एम०  के ट्रांसफर को लेकर वह अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए लेकिन योगी आदित्यनाथ से मिलने के बाद उन्होंने अपना धरना वापस ले लिया था | 
पिछले दिनों राजभर ने अपनी पार्टी की एक रैली को संबोधित करते हुए योगी सरकार को मायावती और मुलायम सिंह की सरकार से भी ज्यादा भ्रष्ट बता दिया था | 
योगी सरकार में भाजपा के एक और मंत्री अनिल राजभर बताते हैं कि ओमप्रकाश राजभर अगले चुनाव में भाजपा से 5 सीटें चाहते हैं और अपने बेटे को सांसद बनाने के लिए दबाव की राजनीति कर रहे हैं | 
अब अकेले तो राजभर कभी विधायक का भी चुनाव नहीं जीत पाए लेकिन बुंदेलखंड की लगभग 10 से 15 विधानसभा सीटों पर भाजपा के लिए उनका साथ बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है | 

बिहार में भी हो सकता है उलटफेर 

बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए  में वापस आने के बाद से ही  केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा  के अध्यक्ष जीतन राम मांझी नाराज बताए जा रहे हैं | सबको पता है उपेंद्र कुशवाहा और जीतन मांझी के नीतीश कुमार के रिश्ते अच्छे नहीं हैं | 
ऐसे में भाजपा के ये दो साथी किस ओर जाते हैं बिहार के दृष्टिकोण से आगामी चुनावों में  यह बेहद अहम हो सकता है

दक्षिण भारत में भी एनडीए को लग सकता है झटका

शिवसेना के अलग होने की घोषणा के बाद ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने भी भाजपा को चेतावनी भरे लहजे में गठबंधन धर्म याद दिला दिया है नायडू ने कहा कि वह अपना मित्र धर्म निभा रहे हैं लेकिन अगर भाजपा अलग होना चाहती है तोह उन्हें कोई दिक्कत नहीं है | 
इसका प्रमुख कारण स्थानीय भाजपा विधायकों द्वारा प्रदेश सरकार की आलोचना और भाजपा के वाई० एस० आर० कांग्रेस से गठबन्धन की चर्चाओं का जोर पकड़ना माना जा रहा है  | 

उत्तर प्रदेश और बिहार में अगर यह संभावित गठबंधन टूट भी जाते हैं तो भी शायद भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं होगा लेकिन शिवसेना के बाद अगर  टीडीपी भी भाजपा से अलग होती है तो महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में भाजपा  के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है | 

ओप्पो ला रहा है 5जी स्मार्टफोंस जानिए कब तक होगा बाजार में उपलब्ध ?

ओप्पो ला रहा है 5जी स्मार्टफोंस जानिए कब तक होगा बाजार में उपलब्ध ?

Oppo 5G
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पिछले कुछ सालों में भारत और विश्व भर के मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में बेहद जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली है इस वृद्धि का प्रमुख कारण मोबाइल निर्माता कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा और नई तथा आसान टेक्नोलॉजी से लोगों को अवगत कराना था | 
भारत में 2016 में मुकेश अंबानी की जियो टेलीकॉम में इस दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए लोगों को 4जी टेक्नोलॉजी से अवगत कराया था | 
टेक्नोलॉजी और स्मार्टफोन की इस दुनिया में हर कोई नवीनतम और बेहतरीन फीचर्स वाले उत्पाद ही इस्तेमाल करना चाहता है और ऐसे में मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों की जरा सी देरी  उन्हें मोबाइल बाजार में बहुत पीछे लाकर खड़ा कर देती है
इसीलिए चीन की दिग्गज स्मार्टफोन निर्माता कंपनी ओप्पो ने अगले साल तक मोबाइल उपभोक्ताओं को 5जी स्मार्टफोन उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है | 
चीन में आयोजित क़्वालकॉम  टेक्नोलॉजी दिवस 2018 की मौके पर कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी टोनी चेन ने बताया की ओप्पो दिग्गज चिप निर्माता कंपनी क़्वालकॉम के साथ स्मार्टफोंस का निर्माण करेगी | 
टोनी चेन के अनुसार क़्वालकॉम  रेडियो फ्रीक्वेंसी  , फ्रंट एंड फील्ड जैसे व्यापक समाधान ओप्पो को उपलब्ध कराएगी  टोनी चेन ने बताया कि मोबाइल बाजारों में ओप्पो  के 5जी स्मार्टफोन 2019 तक उपलब्ध होंगे | इस अवसर पर चेन ने कहा कि ओप्पो भविष्य में मोबाइल उपभोक्ताओं के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और 5G  जैसी टेक्नोलॉजी में निवेश करता रहेगा और वैश्विक बाजारों खासतौर पर जापान में अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए लगातार प्रयासरत रहेगा | 

Thursday, 25 January 2018

जानिए क्यों ऐतिहासिक होगा इस साल का गणतंत्र दिवस समारोह

Hindibaazi Media

हमारे देश के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक गणतंत्र दिवस वैसे तो हर भारतीय के लिए हमेशा ही खास होता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के बढ़ते कद के लिहाज से इस साल का गणतंत्र दिवस बेहद खास बन जाता है |
हमारे देश में गणतंत्र दिवस की परेड में शुरू से ही किसी विशेष अतिथि को बुलाने की परंपरा रही है बता दें कि 10 साल के यूपीए शासनकाल में 2007 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को छोड़कर किसी भी बड़े देश का राष्ट्राध्यक्ष इस समारोह का मेहमान नहीं बना, दरअसल किसी भी देश में इस तरह के इस तरह के समारोह उस देश की शक्ति प्रदर्शन का एक माध्यम बनते हैं |
यूपीए शासनकाल के दौरान कमजोर विदेश नीति और बड़े देशों से आयी रिश्ते में खटास के कारण किसी भी बड़े देश के राष्ट्राध्यक्ष ने इस समारोह में शामिल होने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई |
2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद भारत की मजबूत विदेश नीति और पीएम मोदी की विदेश यात्राओं के फलस्वरुप 2015 के गणतंत्र दिवस समारोह में विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा सम्मिलित हुए लेकिन इस साल की उत्सव में एक या दोनों देश नहीं बल्कि पूरे 10 एशियन देशों के प्रतिनिधि शिरकत करेंगे |
क्या होगा खास इस साल के समारोह में
पिछले महीने रेडियो पर पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा चूंकि इस साल इंडिया आसिआन संबंधों को 25 साल पूरे हो रहे हैं अतः इस साल आसिआन देश के प्रमुखों को इस समारोह में निमंत्रित किया गया है आसिआन यानी एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस 10 दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का एक समूह है जिसके सदस्य देश हैं ब्रूनेई ,कंबोडिया, इंडोनेशिया लाओज , मलेशिया सिंगापुर , म्यांमार , फिलीपींस , थाईलैंड और वियतनाम |
वर्तमान में सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली हसीन लूंग इस समूह के चेयरमैन है |
सरकार के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस साल के समारोह में मंच 40 फीट की बजाए 95 फीट चौड़ा बनाया जाएगा | कार्यक्रम में पीएम मोदी स्वयं सभी देशों के प्रतिनिधियों की अगवानी करेंगे वही राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के बीच आसिआन समूह के चेयरमैन ली हसीन लूंग बैठेंगे |
विदेश नीति के जानकार सरकार के इस कदम को एक्ट ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा बता रहे हैं उनके अनुसार सरकार के इस कदम से भारत की अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पैठ बढ़ेगी|

Monday, 15 January 2018

क्या योगी , भाजपा को कर्नाटक में दिलायेंगे सत्ता ?

क्या योगी , भाजपा को कर्नाटक में दिलायेंगे सत्ता ?

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2014 के चुनावों में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को अप्रत्याशित जीत मिली तो उस समय नरेंद्र मोदी की पहचान एक बड़े हिंदूवादी नेता के रूप में होती थी लेकिन बीते 3 सालों के शासन में प्रधानमंत्री मोदी उस कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि से बाहर निकलने की कोशिश करते हुए नजर आए हैं |
प्रधानमंत्री मोदी के इमेज मेकओवर (छवि में बदलाव )के पीछे का प्रमुख कारण इस्लामिक देशों से भारत के संबंधों को मजबूत करना माना जाता है |
भाजपा समर्थकों का एक बड़ा वर्ग (खास तौर पर हिंदूवादी संगठन) प्रधानमंत्री मोदी के इमेज मेकओवर से असंतुष्ट था लेकिन पिछले साल उत्तर प्रदेश में मिली जीत के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने न सिर्फ दक्षिणपंथी समर्थकों को संतुष्ट किया बल्कि हिंदुत्व को फिर एक बार प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बना दिया |

राष्ट्रीय परिदृश्य में योगी की एंट्री

ध्रुवीकरण के प्रतीक योगी आदित्यनाथ की राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री हुई गुजरात और हिमाचल के चुनावों में जब योगी ने गुजरात में जाति के नाम पर बँट चुके पाटीदार और दलित समुदाय को भाजपा के पक्ष में लाने के लिए हिंदू एकता का विषय उठाया |
भले ही योगी आदित्यनाथ का हिंदुत्व कार्ड गुजरात में कुछ खास कमाल नहीं कर पाया मगर फिर भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा विकास के साथ हिंदुत्व को भी प्रमुखता दे रही है इसका कारण है कर्नाटक में कांग्रेस के शासनकाल में आए दिन हो रही दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं की हत्याएं | इन हत्याओं की वजह से वहां के हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि प्रदेश सरकार सेकुलरिज्म के नाम पर वहां के बहुसंख्यकों के साथ भेदभाव कर रही है |
कर्नाटक भाजपा सिद्धरमैया के कथित भ्रष्टाचार पर कुछ भी खुलकर बोल नहीं पा रही है क्योंकि उसके नेता बीएस येदुरप्पा पर भ्रष्टाचार के कई मामले लंबित हैं ऐसे में कर्नाटक भाजपा योगी आदित्यनाथ को अपना स्टार प्रचारक बनाकर वहां भी हिंदुत्व एकता का नारा बुलंद करने में लग गई है |

योगी का प्रभाव

एक तरफ जहां हर राज्य में मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली भाजपा इस बार योगी को आगे कर रही है तो वहीं भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा ले रही है विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व न सिर्फ उसे मुस्लिमों से जोड़े रखेगा बल्कि कांग्रेस की कथित हिंदू विरोधी छवि को भी तोड़ने में मददगार साबित होगा | यही कारण है कि गुजरात में राहुल गांधी के मंदिर दर्शन से शुरू हुआ सॉफ्ट हिंदुत्व का असर कर्नाटक में भी दिख रहा है तभी तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री खुद को असली हिंदू व भाजपा RSS को नकली बताने में लग गए हैं |

निष्कर्ष

भाजपा का योगी आदित्यनाथ और हिंदुत्व को अपने एजेंडे में प्रमुखता देना राजनीतिक रुप से फायदेमंद रहेगा या नहीं ये तो आने वाला समय ही तय करेगा लेकिन भाजपा के इस कदम ने , न सिर्फ विपक्ष को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर किया है बल्कि सेकुलरिज्म नामक राजनीतिक उपकरण को भी अप्रासंगिक बना दिया है |

Tuesday, 9 January 2018

त्रिपुरा विधानसभा चुनावों का सबसे सटीक विश्लेषण

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हमारे देश में चुनाव का मौसम कभी खत्म नहीं होता तभी तो गुजरात और हिमाचल के चुनाव खत्म होते ही सभी की नजर नॉर्थ ईस्ट के 3 राज्यों मेघालय , त्रिपुरा और नागालैंड पर जाकर टिक गई है |
तीनों ही राज्यों में मार्च में सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है ऐसे में विधानसभा चुनाव अगले महीने फरवरी में अपेक्षित है चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार चुनाव तारीखों का ऐलान अगले हफ्ते तक कर दिया जाएगा | मेघालय और नागालैंड के चुनावों पर कभी और बात करेंगे , आज चलिए जरा त्रिपुरा विधानसभा की स्थिति को नजदीक से समझने की कोशिश करते हैं |

त्रिपुरा में पिछले कुछ महीनों में घटे राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो आजाद भारत के इतिहास में पहली बार यह राज्य वामपंथी पार्टियों और भाजपा की सीधी टक्कर का गवाह बनता हुआ नजर आ रहा है ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि त्रिपुरा में कांग्रेस सत्ता की लड़ाई से लगभग बाहर हो गई है कांग्रेस के 10 में से 6 विधायकों ने पहले तृणमूल कांग्रेस और फिर वही विधायक भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा त्रिपुरा विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई |
त्रिपुरा में कांग्रेस के हाशिए पर जाने का मुख्य कारण है वामपंथी पार्टियों के प्रति उसका नरम रुख | कांग्रेस का यह नरम रुख एक तरह से उसकी राजनीतिक मजबूरी भी है क्योंकि 2019 के चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर सभी गैर एनडीए दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रही है ऐसे में त्रिपुरा में सीपीएम का विरोध उसे महंगा पड़ सकता है |
यही कारण है कि बंगाल चुनावों में जब कांग्रेस ने लेफ्ट पार्टियों से गठबंधन किया है तो राज्य में कांग्रेस के 6 विधायक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में चले गए और जब ममता बनर्जी और लेफ्ट पार्टियों ने राष्ट्रपति चुनाव में एक पक्ष में वोटिंग की तो सभी विधायक भाजपा में आ गए |
त्रिपुरा में चुनावों का समय नजदीक आते देख यहां की सभी आदिवासी वोट बैंक आधारित पार्टियों IPFT , INPT और नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ़ त्रिपुरा ने भाजपा कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन की बातचीत तेज कर दी है |
इन्हीं राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच पिछले हफ्ते IPFT जोकि Tripura Tribal Areas Autonomous District Council (TTAADC) को अलग राज्य बनाने की मांग कर रही है ,के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के कई सीनियर नेताओं से मुलाकात की | मुलाकात के बाद अगरतला लौटे पार्टी नेता एन सी देववर्मा ने कहा कि गृह मंत्री ने अलग राज्य की मांग को देखने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी के गठन करने की बात को स्वीकार कर लिया है यह कमेटी सभी पहलुओं पर जांच कर 3 महीने में अपनी रिपोर्ट देगी |
दिल्ली में हुई इन बैठकों के प्रमुख सूत्रधार रहे नॉर्थ ईस्ट में भाजपा के नए चाणक्य हिमंत बिस्वा शर्मा |
आपको बता दें कि भाजपा लेफ्ट और कांग्रेस समेत राज्य की सभी पार्टियों ने अलग राज्य की मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य को दो हिस्सों में बांटना ठीक नहीं है लेकिन चुनावी मुद्दे की तलाश और IPFT को अपने पाले में करने की कोशिशों के बीच भाजपा ने इस मुद्दे को अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दे दिया है
त्रिपुरा के वर्तमान चुनावी माहौल में एक तरफ जहां 20 सालों की सत्ता विरोधी लहर से लड़ रहे मुख्यमंत्री माणिक सरकार के सामने सरकार बचाने की बड़ी चुनौती है वहीं दूसरी तरफ अमित शाह की अगुवाई में भाजपा राज्य में बेहद आक्रामक अंदाज़ में प्रचार प्रसार कर रही है |
राज्य में अभी चुनावी भविष्यवाणी करना तो ठीक नहीं होगा लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि त्रिपुरा विधानसभा के इतिहास में भाजपा जहां अब तक की सबसे मजबूत स्थिति में है तो वहीं कांग्रेस अब तक अपनी सबसे खराब स्थिति में |



Monday, 1 January 2018

तीन तलाक के फेर में कैसे फंसी कांग्रेस ?

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बीते दिनों लोकसभा में ऐतिहासिक ट्रिपल तलाक विरोधी बिल पास हुआ तो अपनी गठबंधन के साथी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने लोकसभा में इस बिल को  अपना समर्थन दे दिया हालांकि लोकसभा में सरकार इसे कांग्रेस के समर्थन के बिना भी  पास करा सकती थी ,
मगर  राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत ना होने के कारण अगर यह महत्वपूर्ण बिल राज्यसभा से पास नहीं होता है तो सरकार इसका ठीकरा विपक्षी पार्टियों के सर फोड़ेगी  |
ऐसे में  कांग्रेस के सामने असली समस्या राज्यसभा में है क्योंकि अगर पार्टी बिल को समर्थन देती है तो बिल पास कराने की वाह-वाही भाजपा सरकार को मिलेगी तो वहीं दूसरी ओर कट्टर मुस्लिम वोटर के  भी पार्टी से दूर जाने का खतरा भी बना रहेगा।
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विभिन्न  मुद्दों पर राज्यसभा में सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस पार्टी को क्षेत्रीय दल समय-समय पर अपना समर्थन देते रहे हैं और वो भी कांग्रेस से तीन तलाक़ विरोधी बिल का विरोध करने का दबाव बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर बढ़ रही कांग्रेस अगर इस  बिल का विरोध करती है तो इससे देशभर  में कांग्रेस की महिला विरोधी होने और मुस्लिम तुष्टिकरण करने का सन्देश चला जायेगा।
राज्यसभा में आज कांग्रेस का  स्टैंड कुछ भी हो मगर फिलहाल इसका राजनीतिक फायदा तो  सिर्फ भाजपा और ओवैसी को ही मिलता दिख रहा है ऐसे में यह बिल कांग्रेस के लिए गले की फांस बनता हुआ  नजर आ रहा है।