हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू ने राज्य को स्पेशल स्टेटस देने के मुद्दे पर भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ लिया और उसके बाद से ही राजनीतिक विश्लेषक आंध्र की राजनीति में नए समीकरण और नयी संभावनाओं को तलाशने में जुट गए हैं
भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद एक तरफ जहाँ भाजपा समर्थक , राज्य में भगवा पार्टी के उदय का दावा कर रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तेलगु भाषी राज्य को भाजपा के लिए सुनहरा अवसर बता रहे हैं |
तो चलिए हम भी राज्य में भाजपा के इन दावों की सच्चाई को समझने की कोशिश करते हैं
तो चलिए हम भी राज्य में भाजपा के इन दावों की सच्चाई को समझने की कोशिश करते हैं
तेलगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू के लिए नए गठबंधन बनाना और पुराने गठबंधन तोडना कोई नयी बात नहीं है इससे पहले 2009 में मुस्लिम वोटर के छिटकने के डर उन्होंने भाजपा से गठबन्धन तोड़ लिया था लेकिन 2014 में अपने राज्य में मोदी की लोकप्रियता को भुनाने के लिए दोबारा भाजपा से गठबन्धन कर लिया और राज्य की 25 में से 17 पर बीजेपी साथ जीत दर्ज की |
टीडीपी को क्यों छोड़ना पड़ा एनडीए का साथ ?
दरअसल चन्द्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ने की असली वजह राज्य को स्पेशल स्टेटस नहीं बल्कि आंध्र प्रदेश में बदले राजनीतिक समीकरण हैं ,दरअसल आंध्र प्रदेश में विपक्षी दल वाईएसआर कांग्रेस ने राज्य को स्पेशल स्टेटस देने के मुद्दे पर भाजपा के बहाने टीडीपी को खलनायक की भूमिका में पेश कर दिया | जगन रेड्डी ने आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा न देने के बावजूद टीडीपी द्वारा भाजपा के समर्थन को ही मुद्दा बना दिया अब ऐसे में डैमेज कंट्रोल में जुटे चंद्रबाबू नायडू के पास भाजपा से गठबंधन तोड़ने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचा था
राज्य में भाजपा की क्या है स्थिति ?
त्रिपुरा की जीत को यदि भाजपा समर्थक आंध्र के साथ जोड़कर देखते हैं तो ये शायद खुद कोधोखे में बात होगी क्योंकि एक तरफ त्रिपुरा में जहाँ वामपंथी और कांग्रेस पार्टियां मैदान में थी तो वहीँ आंध्र में टीडीपी , वाईएसआर कांग्रेस ,कांग्रेस और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी जैसे कई छोटे बड़े प्रतिद्वंदी मैदान में हैं |
हालाँकि भाजपा के पक्ष में जो बात जाती है वो ये है की राज्य में आरएसएस का संगठन बेहद विस्तृत है और पार्टी भी बूथ स्तर अपने संगठन का विस्तार कर चुकी है |
आंध्र में भाजपा के पास 1990 से अब तक (1998 को छोड़कर ) 3 प्रतिशत वोट शेयर रहा है |
राज्य में भाजपा के पास बड़े चेहरे की कमी है और सभी क्षेत्रीय दलों द्वारा भाजपा को खलनायक की भूमिका में पेश किये जाने से , दूसरी पार्टियों का नेता फ़िलहाल भाजपा जाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है |
ऐसे में अभी की परिश्थितियों हुए 2019 के आम चुनावों में भाजपा से बहुत अच्छे प्रदर्शन करना शायद ठीक नहीं होगा लेकिन अगर पार्टी इस तरह राज्य में अपने संगठन विस्तार करती रही अगले 2 -3 चुनावों में भाजपा भी आंध्र प्रदेश की मुख्य राजनीतिक धारा में आ सकती है |
राज्य में भाजपा की क्या है स्थिति ?
त्रिपुरा की जीत को यदि भाजपा समर्थक आंध्र के साथ जोड़कर देखते हैं तो ये शायद खुद कोधोखे में बात होगी क्योंकि एक तरफ त्रिपुरा में जहाँ वामपंथी और कांग्रेस पार्टियां मैदान में थी तो वहीँ आंध्र में टीडीपी , वाईएसआर कांग्रेस ,कांग्रेस और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी जैसे कई छोटे बड़े प्रतिद्वंदी मैदान में हैं |
हालाँकि भाजपा के पक्ष में जो बात जाती है वो ये है की राज्य में आरएसएस का संगठन बेहद विस्तृत है और पार्टी भी बूथ स्तर अपने संगठन का विस्तार कर चुकी है |
आंध्र में भाजपा के पास 1990 से अब तक (1998 को छोड़कर ) 3 प्रतिशत वोट शेयर रहा है |
राज्य में भाजपा के पास बड़े चेहरे की कमी है और सभी क्षेत्रीय दलों द्वारा भाजपा को खलनायक की भूमिका में पेश किये जाने से , दूसरी पार्टियों का नेता फ़िलहाल भाजपा जाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है |
ऐसे में अभी की परिश्थितियों हुए 2019 के आम चुनावों में भाजपा से बहुत अच्छे प्रदर्शन करना शायद ठीक नहीं होगा लेकिन अगर पार्टी इस तरह राज्य में अपने संगठन विस्तार करती रही अगले 2 -3 चुनावों में भाजपा भी आंध्र प्रदेश की मुख्य राजनीतिक धारा में आ सकती है |
0 comments:
Post a Comment